दिव्य दर्ष्टि का मतलब होता है वह दृष्टि जो खास तरह की दर्ष्टि होती है जिस से वह देखा जा सकता है जो साधारण मनुष्य की आंखे नहीं देख सकती
जैसे
१. मनुष्य बहुत छोटी चीज को नहीं देख सकता क्योकि यह उसकी आँखों की सीमा से भी बारीक़ है
२. मनुष्य बहुत दूर की चीज नहीं देख सकता क्योकि यह भी उसकी आँखों की सिमा से बहुत दूर है |
३. मनुष्य अपने भविष्य को नहीं देख सकता जब उसके सामने वर्तमान में आएगा तभी है
४. मनुष्य अपने भूतकाल को आँखों से नहीं देख सकता जैसे बचपन में जो शरीर था व वर्तमान में नहीं उसे सिर्फ जो आँखों के सामने वर्तमान है वही दिखाई देता है
५. जब आँखों की रौशनी कमजोर हो जाये तो वो भी नहीं दिखाई देता जो आम इंसान देख सकता है
६. जब मन विषय में लिप्त होता है तो कुछ नहीं दिखाई देता हर तरफ विषय ही दिखाई देते है
अब दिव्य दृष्टि उसको मिलेगी जो ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे
१. इस दृष्टि से आँखों की रौशनी बढ़ेगी व जिसे आम आंखे नहीं देख सकती उसे आप देख सकोगे चाहे वो बारीक़ हो या दूर
२. आप की आँखों में दिव्यता आ जाएगी व जैसे ही आप आंखे बंद करके अपना या किसी का भविष्य देखोंगे तो भविष्य आप को दिखाई देगा इसे दृष्टि सिद्धि कहते है जब आप अपनी आँखों से बिलकुल भी अश्लील व कामुक चीजों को नहीं देखते तो आपकी आँखों में सत्यता आती है, आप अपने भविष्य के सपने को पहले ही साकार हुआ देख सकते हो व सपना वैसे ही साकार होगा जैसे आप ने देखा है
जैसे हवाई जहाज नहीं बना पर जिसने खोजा उसने इसे पहले ही देख लिया व वैसे ही बनाया जैसे देखा व वैसे ही बना व उड़ा जैसे देखा था | यह है दिव्य दृष्टि जो ब्रह्मचर्य के पालन से मिलती है
३. इस दृष्टि से अपना भूतकाल भी आप को पूरी तरह से स्मरण रहता है | व ऑंखें बंद करके उसको देख सकते हो |
आप ऐसे प्रश्न पूछोंगे जिससे किसी का भी भूतकाल आप देख सकते हो , भोगी कहा ऐसे प्रेशन पूछेगा वो तो अपने ही नरक में सैर कर रहा होता है |
४ इस दिव्या दृष्टि से उन मुश्कलों में सम्भावनों को व्यक्ति देख सकता है जिसेसाधारण व्यक्ति मुश्कलें समझता है
ब्रह्मचर्य के १०० लाभ - भाग 18 पूरा यहां पड़े at ब्रह्मचर्य के १०० लाभ - भाग 18
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