"ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 18 में आप का स्वागत है। भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४, भाग ५ , भाग 6 और भाग 7 va भाग 8 व भाग ९ व भाग १० व भाग ११ , भाग १२ भाग 13 , भाग 14 व भाग 15 व भाग 16 व भाग 17 पढ़ें।
ब्रह्मचर्य का ८६वा लाभ - शक्ति, अधिकार व योग्यता का समन्वय
जिस व्यक्ति में शक्ति, अधिकार व योग्यता ३ चीजों का एकता समन्वय होगा उसके कार्य हमेशा सफल होंगे , ब्रह्मचर्य की पढ़ाई करने से आप में यह तीनों चीजे आ जाती है व आप उनका समन्वय भी कर सकते हो
ब्रह्मचर्य से आप में शक्ति आ जाती है क्योकि आप वीर्य की एक एक बून्द को अपनी जान से ज्यादा संभाल के रखते हो व विषयों में इसे व्यर्थ नहीं करते |
ब्रह्मचर्य से आप में योग्यता भी आ जाती है क्योकि आप हर समय अच्छे लोगो की सांगत करते हो जिन से आप को ज्ञान प्राप्त होता है , आप अच्छी किताबें पड़ते हो जिन से आप को ज्ञान प्राप्त होता है व जिस से आप की योग्यता बढ़ जाती है
ब्रह्मचर्य से आप में अधिकार भी आ जाता है क्योकि आप ने तप क्या है आप का हर किसी के ऊपर एक तपस्वी होने का अधिकार हो जाता है जो किसी को भी तप करना सीखा सकता है व इसकी जिमेवारी ले सकता है ऐसा सहस भी कर सकता है
अब आप इसी को आधार बना कर जो भी कार्य करोगे वो सफल होगा
मान लीजिये आप ने किसी को नौकरी पर रखना है जो इसके लिए योग्य है अब आप उसको उतनी ही शक्ति दोगे जितनी उसकी योग्यता है यह शक्ति धन के रूप में होगी व यह धन तब बताओगे जब उसकी इसका अधिकार लेने की जिमेवारी लेगा | अगर वो जिमेवारी नहीं लेता तो धन न बताये ताकि उसमें लालच रूपी विषय न आये क्योंकि ब्रह्मचारी खुद विषयों से मुक्त होता है इस लिए वह हर समय सबको विषय मुक्त रखना चाहता है | इस लिए सिर्फ योग्यता ही काफी नहीं उसके जिमेवारी लेने की साहस की भी परीक्षा है जो सिर्फ ब्रह्मचारी ही ले सकता है |
जैसे एक माँ जिसमें शक्ति हो , अधिकार हो क्योकि ९ महीने बच्चे को अपने पेट में रख कर उसने तप किया है बच्चे की देखभाल भी की व योग्यता भी हो ताकि अपने बच्चे को ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे सकते
तो वह अपने बच्चे को योग्य बना सकती है , अपने बच्चे को शक्तिशाली बना सकती है , अपने बच्चे को कोई उच्चा अधिकारी बना सकती है
यदि माता के पास शक्ति व अधिकार तो है पर योग्यता नहीं है तो उसे अपने बच्चे को किसी महान गुरु जो के अखंड ब्रह्मचारी हो के गुरुकुल भेजना चाहिए वही उस बच्चे का जीवन उनती की रह पर भेज सकता है |
ब्रह्मचर्य का ८७ वा लाभ - जन्म व मरण के चक्रों से मुक्ति
ब्रह्मचर्य के पालन से आपको सबसे बड़ा लाभ यह मिल सकता है कि आप इस संसार के जनम मरण के चक्रों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हो | जब आप बार बार ब्रह्म का सिमरन करते हो तो परमात्मा को आप की आत्मा से मोह हो जाता है व हमेशा के लिए आपको अपनी गोद में रख देता है जब तक आप का संसार से मोह है तो संसार की कामनाये आप का पीछा नहीं छोड़ेगी व ें विषयों के कारण आप बार बार कचन व कामनी से मोहित हो जाओगे व यह आपकी आसक्ति आप से अधर्म के कार्य कराएगी जिससे आप कर्म बंदन में अपने आप को फसा दोगे व कर्मों का हिसाब किताब देना मतलब नया जनम ऐसे ही ८४ लाख जूनिया बनी हर कोई अपने कर्मों का हिसाब किताब दे रहा है क्योकि
सुख होगा तो भी उसे भोगने गर्भ जूनि में आना होगा
दुःख होगा तो भी उसे भोगने गर्भ जूनि में आना होगा
तो गर्भ में न आये इसके लिए प्रभु का हर समय सिमरन करना होगा जो के एक अंखंड ब्रह्मचारी कर सकता है जिसको काम व वासना आकर्षित ही न करे |
ॐ वर्षोसिम समानानां उद्धततामिवंव सूर्य |
जैसे एक पति जब अपनी पत्नी से विवाह करके अपने घर लाता है तो वह सूर्य बन जाता है
क्योकि उसकी पत्नी ऊषा थी ऊषा मतलब सुबह उसने अपने सारे पिता के घर के मोह को तोड़ दिया व अपने पति के घर आ गयी जैसे सुबह अपना रात्रि से मोह को ख़तम करके सूर्य की रौशनी में अपने को ख़तम कर देती है
रात्रि काम व मोह की देवी है यही जनम मरण का चक्र लाती है | अज्ञान को भी रात्रि कहा गया है | जब पति बनता है तो पति अपने आप को सूर्य बना लेता है व कसम खाता है के सिर्फ सूर्य ( पुत्र ) या ऊषा (पुत्री ) को पैदा करने के बाद वह अपने वीर्य को अपनी पत्नी की सुंदरता के मोह में व काम वासना के मोह में इसे व्यर्थ नहीं करेगा व ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने आप को सूर्य साबित करेगा | सूर्य वह जिस पर कोई दोष नहीं लगा सकता | जिससे कोई आँख नहीं मिला सकता | सूर्य वह जो हर किसी का लाखों सालों की अँधेरे की मैल उतार दे |
जिसका विवाह नहीं भी हुआ वो भी अपने ज्ञान से गुरु के रुप में सूर्य ( पुत्र ) या ऊषा (पुत्री ) पैदा करेगा व सबको परमात्मा की राह पड़ लेकर जायेगा
ब्रह्मचर्य का ८८वा लाभ - भगवान का सच्चा भक्त बनना
भगवान का सच्चा भक्त वो है जो भगवान को हमेशा अपने मन में याद करता है व भगवान उसके वश में हो जाते है ब्रह्मचर्य में यही होता है , मन से आप विषय को सदा के लिए त्याग देते हो व हमेशा भगवान का सिमरन करते हो | तथा आप एक सच्चे भक्त बन जाते हो |
यह प्रेम गाय का अपने बछड़े से प्रेम जैसा होता है
गाय को ग्वाला घास चराने ले जाता है पर सारा दिन उसकी माँ को अपने मन में अपने बच्चे की याद रहती है गाय की तरह आप का भगवान के साथ प्यार हो तभी सच्ची भक्ति है
यह प्रेम बंदरी के बच्चे का अपनी माँ से प्रेम जैसा होता है
ब्रह्मचर्य का ८९वा लाभ - दिव्य दृष्टि प्राप्त होना
दिव्य दर्ष्टि का मतलब होता है वह दृष्टि जो खास तरह की दर्ष्टि होती है जिस से वह देखा जा सकता है जो साधारण मनुष्य की आंखे नहीं देख सकती
जैसे
१. मनुष्य बहुत छोटी चीज को नहीं देख सकता क्योकि यह उसकी आँखों की सीमा से भी बारीक़ है
२. मनुष्य बहुत दूर की चीज नहीं देख सकता क्योकि यह भी उसकी आँखों की सिमा से बहुत दूर है |
३. मनुष्य अपने भविष्य को नहीं देख सकता जब उसके सामने वर्तमान में आएगा तभी है
४. मनुष्य अपने भूतकाल को आँखों से नहीं देख सकता जैसे बचपन में जो शरीर था व वर्तमान में नहीं उसे सिर्फ जो आँखों के सामने वर्तमान है वही दिखाई देता है
५. जब आँखों की रौशनी कमजोर हो जाये तो वो भी नहीं दिखाई देता जो आम इंसान देख सकता है
६. जब मन विषय में लिप्त होता है तो कुछ नहीं दिखाई देता हर तरफ विषय ही दिखाई देते है
अब दिव्य दृष्टि उसको मिलेगी जो ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे
१. इस दृष्टि से आँखों की रौशनी बढ़ेगी व जिसे आम आंखे नहीं देख सकती उसे आप देख सकोगे चाहे वो बारीक़ हो या दूर
२. आप की आँखों में दिव्यता आ जाएगी व जैसे ही आप आंखे बंद करके अपना या किसी का भविष्य देखोंगे तो भविष्य आप को दिखाई देगा इसे दृष्टि सिद्धि कहते है जब आप अपनी आँखों से बिलकुल भी अश्लील व कामुक चीजों को नहीं देखते तो आपकी आँखों में सत्यता आती है, आप अपने भविष्य के सपने को पहले ही साकार हुआ देख सकते हो व सपना वैसे ही साकार होगा जैसे आप ने देखा है
जैसे हवाई जहाज नहीं बना पर जिसने खोजा उसने इसे पहले ही देख लिया व वैसे ही बनाया जैसे देखा व वैसे ही बना व उड़ा जैसे देखा था | यह है दिव्य दृष्टि जो ब्रह्मचर्य के पालन से मिलती है
३. इस दृष्टि से अपना भूतकाल भी आप को पूरी तरह से स्मरण रहता है | व ऑंखें बंद करके उसको देख सकते हो |
आप ऐसे प्रश्न पूछोंगे जिससे किसी का भी भूतकाल आप देख सकते हो , भोगी कहा ऐसे प्रेशन पूछेगा वो तो अपने ही नरक में सैर कर रहा होता है |
४ इस दिव्या दृष्टि से उन मुश्कलों में सम्भावनों को व्यक्ति देख सकता है जिसेसाधारण व्यक्ति मुश्कलें समझता है
ब्रह्मचर्य का ९०वा लाभ - इच्छा शक्ति प्राप्त होना
जिसने अपने इन्द्रियों को अपने वश में करके ब्रह्मचर्य के व्रत को पूरा किया | उसकी इच्छा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है |
यही इच्छा शक्ति जो ब्रह्मचर्य की थी वो राम प्रसाद बिस्मिल में थी क्योकि उन्होंने शहीद होने तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया था | उन्होंने इच्छा की देश के लिए बलिदान होने की वो भी भगवान ने पूरी की
उन्होंने कहा भी था
सर फरोशी की तमना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है
राम प्रसाद जी ने अपनी आतम कथा में लिखा है के ब्रह्मचर्य से आज तक जितने भी महापुरषों ने जो इच्छा की वो उनको प्राप्त हुआ
इसी इच्छा शक्ति से राम ने रावण का वध किया | उन्होंने कसम खायी जब तक पापी रावण का मैं नाश नहीं करुगा तब तक जितना भी मुझे युद्ध करना हो मैं करुगा | विजय सत्य की ही होती है
इसी इच्छा शक्ति से हनुमान ने पूरी लंका में आग लगा दी
इसी इच्छा शक्ति ने देवरत को भीष्म बनाया व उसने कसम खायी के मर्त्यु मेरी इच्छा के अनुसार आये , वैसा ही हुआ |
यह दृढ़ इच्छा शक्ति का परिणाम है कि चंद्रशेकर आजाद अंत तक अंग्रेजों के हाथ नहीं आये व अंग्रेज उन्हें जिन्दा न पकड़ सके
उन्होंने कहा
खायी है कसम
नाम आजाद है आजाद रहूगा मरते दम तक
दृढ़ इच्छा शक्ति उनको अखंड ब्रह्मचर्य से प्राप्त हुए, उन्होंने एक बून्द भी वीर्य वियर्थ नहीं जाने दिया
यही ब्रह्मचर्य की शक्ति थी महराणा परताप व शिवा जी में जिन्होंने ने कसम खायी के अपने जीवन के रहते कभी गुलाम नहीं होंगे व उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति से यह सच कर दिखाया
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