ब्रह्मचर्य पालन करने से हम वीर्य के नाश से बचते है वीर्य नाश करना ही सबसे बड़ी महामूर्खता है
तथा महामूर्ख इसे कुतर्क से ठीक साबित करने की भी मूर्खतापूर्ण कोशिश करता है
महामूर्ख पति
मैंने विवाह किस लिए किया , मैं अपनी पत्नी का पालनपोषण भी इस लिए कर रहा हु के उसके साथ भोग करके आनंद प्राप्त कर सकू पर मुझे और बच्चों की अभिलाषा नहीं है
गुरु :
अरे महामूर्ख पति , अमूल्य वीर्य खर्च क्षणिक सुख के अपनी व अपनी धर्म पत्नी की सेहत के साथ खेलना क्या आनेवाले समय में महा दुःख का कारन नहीं बनेगा
पति का धर्म ब्रह्मचर्य से प्राप्त वीर्य से सिर्फ सूर्य या उषा जैसे संतान पैदा करके जीवन भर के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, ताकि जीवन में कहि भी महामूर्खता न करे व बुद्धि बल बड़ा कर शारीरक,मानसकि व समाजिक उन्नति करे |
वीर्यनाश से पुरष की इन्द्रिय दुर्बल हो जाती है
स्त्री के रज का नाश होने से स्त्री की इन्द्रिय भी दुर्बल हो जाती है
इन्द्रिय दुर्बल होने से आलस बढ़ जाता है
जिससे शारीरक कार्य करने में आप असमर्थ हो जाते हो
शारीरक कार्य करने में असमर्थ होने से शरीर कमजोर होने लग जाता है
कमजोर शरीर को रोग घेर लेते है
वो रोग इस भय व चिंता शुरू हो जाती है, रातों की नींद उड़ जाती है
व सिर्फ दुर्ख़ ही दुःख प्राप्त होता है क्योकि खोया है अपने अमूल्य वीर्य यह है आप की महामूर्खता
यदि ब्रह्मचर्य का पालन करते तो यह महामूर्खता न होती
चाहे धर्म पत्नी से व्यभिचार हो या रंडीबाजी के दुवारा व्यभिचार हो , यह सब अधर्म है व इस अधर्म का फल ही आपको मिलने वाला दुःख है |
कई महामूर्ख लोग धन की शक्ति का दुरूपयोग करके वेश्यागमन करते है जिस से उनके वीर्य का नाश होता है व फिर उससे बिरमारियों से लड़ने की शक्ति ख़तम हो जाती है
यदि आपके पास धन आया है तो इस से फल खाये दूध पिए, कुछ परोपकार के कार्यों में खरच करे जिस से आप को शारीरक शांति प्राप्ति होगी, जीवन हर समय प्रसन रहेगा
ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 19 को पूरा पड़े
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