१. क्रोध का सबसे मुख्य कारण आप के अहंकार को चोट है , जब कोई आप के अहंकार चोट मरता है , आप मेरा अपमान करते हो , यह अपमान के घुट आप के लिए अहसहनीय हो जाते है व मौका मिलते ही या उसमें आप क्रोध वश गलोच करना , अटैक करना व युद्ध करने शुरू कर देते हो , इस लिए विवेकशील व्यक्ति को अहंकारी व्यक्ति के से बात सोच विचार के करनी चाहिए
२. क्रोध का दूसरा मुख्य कारण आप की इच्छा की पूर्ति न होना जिससे आप के अंदर एक आग पैदा हो जाती है जो क्रोध का रूप लेती है जो आप को जलती है व दूसरों को भी जलाती है जो भी आप के संपर्क में आता है |
३. क्रोध का तीसरा कारण दो या उससे ज्यादा व्यक्तियों में किसी बात को लेकर असमझ जो डिबेट होते हुए क्रोध में बदलती है , एक कहता है तुम मूरख हो दूसरा कहता है तुम मूरख हो तुमेह समझ नहीं आता दोने एक दूसरे का अपमान किया व दोनों क्रोध के नरक कुंड में भुने जाते है
४. क्रोध लालच , भय, चिंता से भी जुड़ा हुआ है , जब किसी चीज का लालच होता होता है तो उस लालच की पूर्ति के लिए जुठ का सहारा लिया जाता है व अक्सर जब सचाई को छुपाने के लिए क्रोध में आकर अपमान किया जाता है सच्चे व्यक्ति का
क्या मैं जुठ बोल रहा हूँ , मेरे पर इल्जाम लगा रहे हो , यह सारा धन मुझ से लूटना चाहते हो जब कि क्रोधित व्यक्ति खुद जुठ बोल रहा है , इल्जाम लगा रहा है व धन लूटने की कोशिश कर रहा है
जब किसी से भय हो तो क्रोध की अग्नि से भय को दूर करने की कोशिश की
यह कुत्ता चाहे दूर से भोंक रहा है पर मुझे डर लगता है मैं इसको पत्थर मारता हु व यही मेरा क्रोध है व इसको चोट पंहुचा के मुझे ख़ुशी होगी , यह दूर से भी भोंका क्यों
जब आदमी चिंतित होता है तो भी क्रोधित हो जाता है , क्योकि बहुत भविष्य की व्याकुलता उसकी बुद्धि का नाश कर देती है कोई अच्छी सलाह कर्म की दे तो वो ऐसे लगती है जैसे गाली दी हो
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