"ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 12 में आप का स्वागत है। पहला भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४, भाग ५ , भाग 6 और भाग 7 va भाग 8 व भाग ९ व भाग १० व भाग ११ पढ़ें।
ब्रह्मचर्य का 56 वाँ लाभ : मन की सभी अशुद्धियों को आग लगाने में सहायक
ब्रह्मचर्य का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि ब्रह्मचर्य आप के अंदर की सभी बुराइओं को जलाने की क्षमता रखता है | आप भी जानते होंगे के आग का काम हर चीज को जलाना होता है, आग को संस्कृत में में पावक भी कहते है जिसका अर्थ होता है पवित्र करना | जब ब्रह्मचारी अपने आप को ब्रह्मचर्य की अग्नि में तपाता है तो यह खुद अग्नि बन जाता है व इसकी अपने मन की सभी अशुद्धियाँ ख़तम हो जाती है व जो भी इसके सम्पर्क में अत है उसकी भी सभी गन्दी आदते ख़तम हो जाती है
आप ने अमीचंद का नाम सुना होगा | एक बार स्वामी दयानन्द सरस्वती जी सत्संग कर रहे थे व अमीचंद ने गीत गया भगवान की उसतत का | जब अमीचंद चला गया तो लोगो ने कहा | कि यह अमीचंद वेश्यागमन करता है शराब पिता है | व अपने घर से अपनी धर्म पत्नी को निकल कर एक रखैल को रखा हुआ है तो स्वामी दयानन्द जी जो के अखंड ब्रह्मचारी थे जिन्होंने अपने आप को ब्रह्मचर्य की आग में ४० वर्ष से भी ज्यादा तपाया हुआ था ने अमीचंद को एकांत में बुलाया व कहा अमीचंद तुम हो तो हीरे पर कीचड़ में फसे हुए हो अब समय आ गया है तुम कीचड़ से बाहर आ जाओ, सबसे पहले अपने चरित्र का सुधार करो | अपने मन के सभी दुर्गुणों को दूर करो नहीं तो यह भगवान के भजन गाना तुम्हारा व्यर्थ है यह सिर्फ कहना ही था अमीचंद रोने लग गया व स्वामी दयानन्द जी के पैरों पर गिर अपने पापों की माफ़ी मांगी व घर जा कर सभी शराब की बोतलों को नाली में फेंक दिया | वेश्याओं को घर से भगा दिया व अपनी धर्म पत्नी से माफ़ी मांग कर दुबारा अपने घर में लेकर आया व ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करने लगे व इसी ब्रह्मचर्य ने उनकी सब बुराई को दूर किया व वह महान भगवान के गीत गानेवाला गीतकार बना | यही ब्रह्मचर्य का चमत्कार है के सबसे पहले यह आप के अंदर के अगुणों को जला देगी व जो भी आप के साथ जुड़ेगा उसके अगुणों को जला कर उसको शुद्ध कर के गुणों की खान शुद्ध सोने की तरह बना देगी |
आग को अग्नि देवता भी कहा जाता है व हमारे प्राचीन ऋषिमुनि इसकी की पूजा भी करते थे व अब भी करते है क्योकि वह ब्रह्मचर्य से अपने जीवन को अग्नि की तरह ऊपर की तरफ उनती करते हुए ले जाते है
ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये इदं न मम॥
आग हमे बहुत सारा ज्ञान भी देती है क्योकि इसमें अशुद्धियों को जलाने की अथाह शक्ति है यह आसानी से नहीं जलती | इसका मतलब आप का ब्रह्मचर्य आसानी से सिद्ध नहीं होगा | जैसे प्राचीन समय में आग जलाने के लिए दो पथरो को घंटो रगड़ा जाता था व इस आग को कभी भी भुझने नहीं दिया जाता था वैसे ही आप को करना है
आप को भी अपने मन के साथ युद्ध करना होगा संघर्ष करना होगा घर्षण करना होगा व इस ब्रह्मचर्य की आग को जलाना ही होगा
आज चाहे माचिस का अविष्कार हो गया है पर सिद्धांत तो व्ही है है एक घर्षणयुक्त तल व आग को आसानी से पकड़ने वाली माचिस की तीली जिस पर फास्फोरस का लेप लगा हो पर फिर भी घर्षण व इस माचिस की ढबी को पानी से बचा के रखा जाता है आपको भी अपने जीवन को सभी कुसंग से बचा के रखना है व हमेशा ही ब्रह्मचर्य के ऊपर ध्यान देना है
ब्रह्मचर्य का 57 वाँ लाभ : मन में मैल न लगना
ब्रह्मचर्य के पालन से आपको कभी गंदगी नहीं लग सकती क्योकि आपका जीवन पानी की तरह होता है पानी का कार्य गंदगी को साफ करना होता है ऐसे ही आप का जीवन हो जाता है
जब भी कपड़ो पर मैल होती है तो हम पानी से धोते है वैसे ही ब्रह्मचारी हमेशा परमात्मा का नाम लेता है उसको याद करता है व हर बार उसको याद करने से उसका मन भी पानी की तरह निर्मल हो जाता है जो भी उससे ज्ञान लेगा उसकी भी मन की मैल ख़तम हो जाएगी
ब्रह्मचर्य का 58वाँ लाभ : ज्ञान का सागर बनना
ब्रह्मचर्य के पालन से आप ज्ञान के सागर बनते हो क्योकि जब भी आप अपनी काम इच्छा, काम के विचारों व इन्द्रिय स्वादों को त्याग कर ज्ञान लेना आरम्भ करते हो तब बहुत जल्दी आप के अंदर ज्ञान समाने लगता है व ज्ञान का आप सागर हो जाते हो जैसे सागर में आप जितना मर्जी पानी डालो या उसमें से पानी निकालों उसे कोई फरक नहीं पड़ता वैसे ही आप का जीवन हो जाता है आप हमेशा की ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने लिए जाओगे व हमेशा उसकी का ध्यान रखोगे
दुनिया की कोई भी चीज आप को समझने में मुश्किल नहीं आएगी जैसे वीर्यवान को भोजन अच्छी तरह से हजम जो जाता है वैसे ही वीर्यवान को ज्ञान भी हजम हो जायेगा व आपके पास उसको सरल शब्दों में बताने के लिए भी सरल शब्दों के ज्ञान का भंडार होगा जो हर किसी को आश्चर्यचकित कर देगा |
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