"ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 15 में आप का स्वागत है। भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४, भाग ५ , भाग 6 और भाग 7 va भाग 8 व भाग ९ व भाग १० व भाग ११ व भाग १२ व भाग 13 व भाग 14 पढ़ें।
ब्रह्मचर्य का ७१वा लाभ : दुनिया की सभी शक्तियों का केंद्र
ब्रह्मचर्य ही सभी तरह की शक्तियों का केंद्र है , हमने बहुत सारी शक्तियों की चर्चा पिछले भाग में की | पर जहां भी कोई शक्ति है उसका केंद्र भी होता है इस मानव शरीर में ब्रह्मचर्य ही इसका केंद्र है , क्योकि जब आप को शक्तियों का केंद्र पता लग गया तो आप आसानी से शक्ति को प्राप्त कर सकते हो |
उदाहरण
१. पृथ्वीराज चौहान ने मोहमद गोरी को युद में १६ बार हराया था क्योकि उसे अपनी शक्ति का केंद्र पता था वह था उसका ब्रह्मचर्य | १७वी बार उसने अपने केंद्र को भूल गया व युद्ध से पहले अपना वीर्य नाश कर दिया अपनी धरम पत्नी के साथ रात को सम्भोग करके | यह शक्ति का केंद्र यहां से ख़तम हो गया क्योकि जब वीर्य का नाश होता है तो बुद्धि का नाश होता है व वह समझने लग गया अहंकार में के जो पृथ्वीराज चौहान १६ बार मोहमद गोरी को हरा सकता है तो इस बार भी हरा देगा तथा यह शक्ति और भी अपने केंद्र से हट गयी , जब आपके पस शक्ति हट जाती है तो किसी और के केंद्र में चली जाती है
मोहमद गोरी १६बार हारा हुआ था पर उसने अपने आप से वादा क्या हुआ था के या तो वो मरेगा या जीतेगा , कहते है जहा विचारों में बल होता है वही वीर्य होता है , इस लिए वीर्य मोहमद गोरी के पास था जो उसने अपने विचारों को मजबूत करने में लगाया ,
१६बार हार गया तो क्या हुआ मैं अपनी आत्मा से हार नहीं मानी मैं १७वी बार युद्ध करके सिद्ध कर दूंगा के मैं हारा नहीं हुआ , तो यही हुआ मोहमद गोरी जीता व प्रथ्वीराज हारा
पर मोहमद गोरी को पता था, अब मैं उसे पता था के वह १८वी बार यद्ध नहीं कर सकता इस लिए उसने पृथ्वीराज के ऑंखें लोहे के गरम सरियों से ख़तम कर दी
पर ब्रह्मचर्य तो आत्मा का हिसा है पृथिवीराज को अंदर से अपने मन की कमजोरी पता लगी वह था युद्ध से पहले वीर्य नाश व उसका एहंकार , अब गलती का अहसास होने से अंदर से ब्रह्मचर्य का पालन शुरू किया व शक्ति उसके अंदर आ गयी उसके दोस्त ने एक प्रीतयोग्यता कराई व मोहमद गोरी की भी सहमति ली
इस प्रतियोग्यता में आवाज के जरिये पृथिवीराज तीर लगाएगा पृथिवीराज को अपनी भाषा में उसके दोस्त ने समझाया के आवाज से exact इस फैसले पर मोहमद गोरी खड़ा है , अपने फिर से कैदी के रूप में प्राप्त हुए ब्रह्मचर्य की शक्ति से पृथ्वीराज ने तीर लगाया व मोहमद गोरी मार दिया
२. मान लीजिये किसी की मोत हो जाती है व उसके शरीर को जला दिया जाता है तो क्या उसके शरीर को शरीर कहेंगे नहीं क्योकि वो राख है , उसका मन है क्या , नहीं वह भी नहीं इसका मतलब आत्मा होने से शरीर है कहा जाता है पर आत्मा से शरीर जुदा किसने किया कोई तो शक्ति है इसका मतलब परमात्मा , परमात्मा ही सभी शक्ति का केंद्र है
व ब्रह्मचर्य का मतलब है अब उसके राह पर चले | बहुत हो गया इन विकारों में जीवन , जहा शक्ति का केंद्र ही नहीं मिलता
३. जैसे एक व्यक्ति गली में दंगा कर रहा है उसकी शिकायत आप पुलिस चौकी में नहीं करते पर बाहर के चौकीदार जो घास काटने का काम करता है को करते हो , जो के शक्ति का केंद्र नहीं है , इस लिए आप को शक्ति भी नहीं मिलेगी , आप को पुलिस को मिलना होगा व रिपोर्ट लिखानी होगी , यह है सही रास्ता वैसे ही यदि आप ने शक्ति अपने जीवन में लानी है है तो काम, क्रोध व लोभ को त्याग करे परमात्मा का ध्यान लगाना है
४. चाहे एक लाख ब्रांचें हो किसी कम्पनी की फिर भी हेड ऑफिस तो होता है उसका बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर तो होते है , शरहोल्डर्स तो होते है , शक्ति बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स व शरहोल्डर्स के पास केंद्रित होती है , वैसे ही सभी शक्तियों का केंद्र ब्रह्मचर्य की आराधना है |
ब्रह्मचर्य का ७२वा लाभ : शरीर की इन्द्रियों से सही कार्य लेना
जो ब्रह्मचर्य का पालन करते है वह शरीर के इन्द्रियों से उसका सही कार्य करते है परमपिता परमात्मा ने यह इन्द्रिय विषय के लिए तो दी ही नहीं बल्कि इनके असली कार्यें के लिए है
मूत्र इंद्री : मूत्र इंद्री पेशाब को करने में सहयोग देती है ताकि हमारे शरीर की गंदगी जो हमारे किडनी है वह शरीर से बहार जाये , यदि इस से यह कार्य न लेकर विषय का कार्य लिया जायेगा जो इसका है ही नहीं (सिर्फ प्रजनन के अपवाद को छोड़ कर ) तो यह इंद्री ही ख़राब हो जाएगी व यह अपना असली कार्य ही अच्छी तरह से नहीं कर सकेगी
स्वाद इंद्री : इसका कार्य मुख्य बोलने का कर्म करना है, हर तरह के प्राकृतिक भोजन को खाते हुए प्राकृतिक स्वाद मिल जाता है पर हम अगर स्वाद के पीछे लग कर अप्राकृतिक चीजे खाये तो मुँह व भोजन नली में छाले हो जाते है व दांतों में पस भर जाती है , फिर हम अस्वस्थ्य के कारण बोल भी नहीं सकते
इस लिए ब्रह्मचर्य में हम हरेक इन्द्रिय के सयम की बात करते है जिससे के इन्द्रिय का जो प्राकृतिक कार्य है वो करे व हम विषयों से बचे रहे ताकि यह इन्द्रियों का जो प्राकृतिक कार्य है जो जीवन के लिए जरुरी है उसमें संकट न आये |
ऑंखें : आंखे भगवान ने विषयों के भोग के लिए नहीं दी, यह इस लिए दी के आप जब चलते हो तो कही खड्डा आ जाये तो आप उसे देख कर बच कर निकले पर विषय में अंधे व्यक्तियों को ऐसी खड्डे में ही गिरना है इस लिए मन कही और होता है व ऑंखें होने के बावजूद भी दीखता नहीं व खड्डे में कई लोग गिर जाते है
कान : कान परमात्मा ने अच्छे विचारों को सुनने के लिए दिए है ताकि हम प्रेरित हो व अपने लक्ष्य को प्राप्त करे , यदि ऐसे विषय में सुनने के लिए इस्तमाल किया जायेगा जिससे के वीर्य का नाश होगा , उसके बाद कान की सुनने की शक्ति भी शीर्ण हो जाएगी इसमें कोई शक नहीं है
जैसे घर में यदि आप नहीं हो फैन का बटन बंद कर दे, यदि नहीं करोगे तो बिजली का बिल बढ़ जायेगा व इससे आप का खर्चा बढ़ जाता है |
वैसे ही विषय आप की ऊर्जा को खाते है व इससे आप की इन्द्रियां जैसे आँख, कान , नाक , चमड़ी , हाथ , पैर , विषयेंद्री कमजोर हो जायगी व डॉक्टर को पैसा दे दे कर थक जाओगे पर बीमारिया आप का पीछा नहीं छोड़ेगी | व आप का बिल ही बढ़ेगा , खर्चा ही बढ़ेगा , व सेहत नहीं मिलेगी | क्या इसमें समझदारी नहीं के फैन बंद कर दिया जाये | क्या इसमें समझदारी नहीं के भोगों से मन का वैराग्य लेकर परमात्मा के भजन गाये जाये |
ब्रह्मचर्य का ७३ वा लाभ : माँ की सभी शक्तियों का आशीर्वाद मिलना
ब्रह्मचर्य का यह लाभ है कि हम हर स्त्री में उस जगत जननी माता को देखने लग जाते है जो हमारे जनम के साथ हमारी देखभाल के लिए आयी | इससे हमे माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है |
हम जानते है माँ कितना पवित्र व आत्मिक शब्द है क्योकि हमारे जीवन में माँ त्याग, बलिदान , ममत्व एवं समर्पण की मूर्ति है क्या हम मां के ऋण से उऋण हो सकते है , नहीं, कभी नहीं हुआ जा सकता है।
परमात्मा भी हमारी माँ है जिसने हमे सोने के लिए धरती माता दी
परमात्मा भी हमारी माँ है जिसने हमे खाने के लिए अनंत भोजन दिया
परमात्मा भी हमारी माँ है जो हर समय हमारी रक्षा करती है
परमात्मा भी हमारी माँ है जो हर समय साँस लेने के लिए हवा दी
हर स्त्री में वही शक्ति प्रगट हो रही है जिसे हम माँ कहते है | इसलिए माँ को ही सभी शक्ति का रूप समझा गया है जब हम हर स्त्री में उसे जगत जननी माँ की पूजा शुरू कर देते है तो उस माँ का हमे शक्ति के रूप में आशीर्वाद मिलता है | क्या माँ कुछ भी अपने पास रखती है वो तो अपना तन, मन, धन अपने बच्चों को त्याग देती है
जो त्याग व बलिदान माँ अपने बच्चे के लिए कर सकती है वह दुनिया का कोई व्यक्ति नहीं कर सकता |
पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माँ कभी भी कुमां नहीं होती
यदि माँ के उसे शक्ति रूपी आशीर्वाद को प्राप्त करना है तो आज से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू कर दे |
व यह ब्रह्मचर्य पालन करना कोई मुश्किल कार्य नहीं जब कोई भी स्त्री से मिले , मन में कहें यह मेरी माँ है व मैं इसका पुत्र हु , देखे उसी समय आप के मन में कैसे पवित्र विचार आना शरू हो जायेगे, ब्रह्मचर्य आप स्थिर हो जायेगा
यह संसार मातृत्वमय है फिर कुभावनाके लिए स्थान कहा ? तब ब्रह्मचर्य पालन में कठनाई क्याश्री राम कृष्ण परमहंस
माँ के पास समुन्द्र के सामान गम्भीरता है
माँ के पास हिमालय के समान धैर्य है
माँ के पास सागर के समान प्रेम व ममता है
यह समुन्द्र के समान गम्भीरता, यह हिमालय के समान धैर्य, यह सागर के सामान प्रेम क्या आप को क्षणिक वासना में प्राप्त हो सकता है
यह समुन्द्र के समान गम्भीरता, यह हिमालय के समान धैर्य, यह सागर के सामान प्रेम तो सिर्फ माँ के आशीर्वाद से प्राप्त हो सकता है जब हम ब्रह्मचर्य रूपी सेवा से माँ को खुश करेगें |
ब्रह्मचर्य का ७४ वा लाभ : पुनर्जन्म
जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है उसका पुनर्जन्म होता है जनम तो पशु का भी होता है पर वः मनुष्य नहीं कहलाते जिसमें मानवता के सभी अच्छे गुण हो उसे हम मनुष्य कहते है | जैसे दया, प्रेम, उदारता, दानशीलता, निर्भयता, कर्मठ होना, लगन, हिमत, सहस, बुद्धिमानी, विवेकशीलता, स्थिरता, क्षमाशीलता , धैर्य, सत्यता | यह सारे मानीवय गुण ब्रह्मचर्य के पालन से आते है यदि यह गुण न हो तो व्यक्ति जनम लेकर भी पशु बना रहता है पशुओं की आदते निद्रा , भोजन , भोग्य व भय ही उसके जीवन का उदेश्य हो जाता है
व गुरु उसे अपने ज्ञान के गर्भ में उसके पुनर्जन्म के लिए धारण करता है जब तक वसु , रुद्र व आदित्य ब्रह्मचारी नहीं बन जाता
वसु को कुबेर का खजाना
रुद्र को बिजली
व आदित्य को सूरज भी कहते है
२४ वर्ष तक विद्यार्थी गुरु से ज्ञान प्राप्त करके वसु ब्रह्मचारी बने
३६ वर्ष तक विद्यार्थी गुरु से ज्ञान प्राप्त करे रुद्र ब्रह्मचारी बने
४८ वर्ष तक विद्यार्थी गुरु से ज्ञान प्राप्त करके आदित्य ब्रह्मचारी बने
माता पिता तो शरीर को जनम देते है पर ब्रह्मचर्य शिक्षा देकर गुरु शीय को ज्ञान से जनम देते है
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ब्रह्मचर्य का ७५ वा लाभ : दुनिया की सबसे कठिन तपस्या में सफल होना
प्राचीन ऋषिमुनि जंगलों में रहते थे, वहां ही कुटियाँ बना लेते थे घासफूस की | फिर उस कुटीया का दरवाजा बन करके व फिर ऑंखें बंद करके भगवान को याद करना शुरू करते थे जब तक के भगवान आप प्रगट न हो जाये
इसी का नाम ही तो ब्रह्मचर्य है के हर दम उसी को याद करे पर दुनिया के विषय आप के मन के लिए सब से बड़ी चनौती है ब्रह्मचर्य सबसे कठिन तप है जो इसको कर लेता है वह इस तपस्या के फल का अधिकारी है
पर आप कहेगें यह करना असंभव है , असंभव शब्द मूर्खो की डिक्शनरी में होता है
मुश्किल जरूर है जैसे रसी पर चलना अभ्यास से सिख सकते है जैसे नट जो करतब दिखाता है वो रसी पर बिना गिरने के डर से चलता है
मुश्किल जरूर है जैसे तलवार की धार पर चलना , पर अभ्यास से यह भी संभव है
दुनिया की महान शक्ति आप के पास है वो है संकल्प की शक्ति
ले आज व्रत के मैं ब्रह्मचर्य का पालन करुगा
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