"ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 16 में आप का स्वागत है। पहला भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४, भाग ५ , भाग 6 और भाग 7 va भाग 8 व भाग ९ व भाग १० व भाग ११ , भाग १२ भाग 13 , भाग 14 व भाग 15 पढ़ें।
ब्रह्मचर्य का ७६वा लाभ - ज्यादा व्यायाम का बल आना
यदि आपने खेल के जगत का विजेता बनना है या आप के वयायाम का कोई बड़ा लक्ष्य है तो ब्रह्मचर्य इसमें सहयोग कर सकता है यदि आप १०० दिन तक वीर्य नाश नहीं करते तो उसके बाद यदि आप व्यायाम करोगे तो आप जितना वयायाम करते हो उसका दुगना कर सकते हो |
इसी ब्रह्मचर्य की शक्ति को प्रोफेसर राममूर्ति जी ने अपनाया तथा पहले वह आधा ही वयायाम छोड़ कर वो चल देते थे फिर उन्होंनेभारतीय आयर्वेद को पड़ा भारत के ब्रह्मचर्य के प्रताप का गौरवमय इतिहास पड़ा जिसमें उन्होंने भीम, द्रोण , हनुमान , अर्जुन के ब्रह्मचर्य की गाथा को सुना | उन्होंने ब्रह्मचर्य के व्रत की प्रतिज्ञा ली | फिर तो आप में मनो भीम का बल आ गया हो
१. सुबह सूर्य उदय से पहले वह उठ जाते फिर
२. ३ किल्लोमीटर तक दौडते |
३. उसके बाद एक फौजी से कुश्ती लड़ते
४. उसके बाद अखाड़े में कुश्ती लड़ते
५. फिर विश्राम करके तैरने चले जाते
६. फिर शाम को 1500 से 3000 दंड
७. 5000 से 10000 तक बैठक कर लेते
एक तो उन में ज्यादा शक्ति व्यायाम की ब्रह्मचर्य से आयी
फिर ज्यादा वयायाम से उनमें इतनी शक्ति आ गई यदि नारयल के पेड़ को धका देते तो २ या ३ नारयल टूट कर नीचे आ जाते
इस तरह ब्रह्मचर्य की शक्ति से उनका वजन 100 किलोग्राम हो गया
छाती ४१ इंच चौड़ी हो गयी जो के फ़ैलाने पर ५७ इंच हो जाती थी
ब्रह्मचर्य का ७७वा लाभ - दुष्टों का नाश करने का बल आना
यदि आप को लगता है संसार में दुष्टों का नाश करने के लिए आप में बल नहीं है तो यह बल आप ब्रह्मचर्य के 365 दिन बिता के प्राप्त कर सकते हो
आप को याद है भीम की भाभी का वासनापूर्ण अपमान किसने किया था
उसका नाम था दुशासन व दर्योधन
तो भीम ने भी व्रत लिया के मैं इन दोनों दुष्टों का नाश करुगा जिन्होंने मेरी भाभी का अपमान किया है
तथा आप को पता ही होगा के भीम ने दुशासन को भी मारा व दर्योधन को भी
यह किस का बल था भीम में
यह ब्रह्मचर्य का बल था जिससे उसने अपनी माता समान भाभी के अपमान का बदला लिया | यदि आज स्त्री पर कोई विषय से बल प्रयोग करता है तो आप भी उस दुष्ट को सबक सिखाये पर उसके लिए आप के पास होना चाहिए ब्रह्मचर्य का 365 का बल | एक एक बून्द वीर्ये की 365 दिन संभाल कर रखेंगे तो भीम जैसा बल आ जायेगा आप में |
ब्रह्मचर्य का ७८ वा लाभ - बिना बोझ की यात्रा का आनंद लेना
यात्रा में यदि आप से डबल वजन हो तो क्या आप को अपनी यात्रा का आनंद आएगा बिलकुल नहीं, यात्रा आप को बिलकुल कुली का भोझ ढोने वाली लगेगी | जीवन भी एक यात्रा है | तथा आप अपनी वासनाओं की इच्छओं का भोझ लेकर यह यात्रा कर रहे हो | जो के हर रोज आप को थका रहा है यात्रा की जाती है ख़ुशी व आनंद के लिए पर आप तो अपनी काम वासनाओं की वजह से इतना भोझ उठा लिया है जितना १०० व्यक्ति भी नहीं उठाते
फेंको इसे, ब्रह्मचारी बनो , ब्रह्मचर्य आप को देगा इस जीवन का आनंद क्योकि हम इस में सभी काम इच्छाओं के भोझ को जला देते है व परमात्मा के नाम लेते हुए इस जीवन का असली आनंद लेते है
पर कामी पति को तो इस की लत लगी हुई है पर जिस को भी यह विषय की लत लगेगी न तो वो बुद्धिमान बनेगा , न ही अपने बच्चों को पाल सकेगा क्योकि पत्नी वयभिचारी पति से कभी पुरषार्थ होता ही नहीं व पुरषार्थ के बिना लक्ष्मी भी नहीं आती | व् अच्छी तरह से न ही उनको अच्छे संस्कार दे सकेगा इस लिए यदि आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहते हो तो संकल्प करे
ब्रह्मचर्य का ७८ वा लाभ - ब्रह्मानन्द की प्राप्ति होना
जब आप ब्रह्मचर्य का पालन लंबे समय तक करते हो तो आप को हर दम परमात्मा ही याद रहता है दिन हो या रात , गर्मी हो या सर्दी , धुप हो या छाया हर दम आप उसकी को याद करते हो , एक दिन परमात्मा आप की इस भगति से प्रसन हो जाते है व आप को दर्शन देते है आप के ही अंदर , इसी मिलन से आप को एक ऐसा आनंद मिलता है जो अब तक के आनंद से ज्यादा है जिसे हमारी कोई भी इंद्री बता नहीं सकती , पर उसकी कीमत है विषय व इंद्री आनंद का पूरी तरह से त्याग | जब एक बार यह ब्रह्मानंद मिल जाता है तो अब उसको किसी और में तो आनंद आता ही नहीं विषय के आनंद तो उसके सामने तुच्छ दिखाई देते है
ब्रह्मचर्य का ८० वा लाभ - कभी रोगी न होना
ऋषि वाग्भट आयर्वेद के बहुत बड़े आचार्य हुए है उन्होंने कहा है के यदि कोई मनुष्य विषय में आसक्ति नहीं रखता तो उसे कोई रोग हो ही नहीं सकता | यदि आप को कोई रोग है तो विषय की आसक्ति अपने भूतकाल में की होगी व उसका फल यह रोग है जो हमे दुखी करता है व अब आप ब्रह्मचर्य का पालन करे व इससे आप की विषय में आसक्ति नहीं रहेगी व आप का यह रोग भी ठीक हो जायेगा
ऋषि सुश्रुत के अनुसार
साद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते।
मदेसोSस्थि ततो मज्जा मज्जायाः शुक्रसम्भ्वः।। (सुश्रुत)
भोजन से रस = ५ दिन
रस से रक्त = ५ दिन
रक्त से मास = ५ दिन
मास से मेड = ५ दिन
मेड से हड्डी = ५ दिन
हड्डी से मजा = ५ दिन
मजा से वीर्य = १० दिन
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कुल समय = ४० दिन
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इसलिए कभी भी यदि आप बीमार नहीं होना चाहते तो इसे न निकलने दे |
आचार्य चरक कहते है
त्रय उपस्त्मभा:- आहार स्वप्नो,ब्रह्मचर्यमिती।
रोग न होना आप के जीवन के तीन सतम्भो पर निर्भर है भोजन , नीदं या स्वपन व ब्रह्मचर्य
जो मनुष्य
सात्विक आहार करेगा
अच्छी नींद करेगा व अपने जीवन के सपनो को पूरा करने के लिए लक्ष्य बना कर कार्य करेगा
जो बुद्धि व मन से पका ब्रह्मचारी होगा वह कभी बीमार नहीं हो सकता
कायस्य तेजः परमं हि शुक्रंमाहारसा दपि सारभूतं।
जित्तात्मना तत्परिरक्षणीयं ततो वपु :
संतातिरप्युदरा।।
शारिर की असली ताकत तो शुक्र है यह आहार वा खाए भोजन का सार रस है आपको इसकी रक्षा जीवात्मा बन कर करनी है वा इसीसे ही आप का शरीर वा संतान उत्कृष्ट होगी
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