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स्वामी दयानंद प्राकृतिक चिकित्सालय  में आपका स्वागत है

इस चिकित्सालय  के संस्थापक डॉ. विनोद कुमार ने रोगियों की सहायता के लिए 500+ बिमारियों की चिकित्सा सबंधी ज्ञान दिया | 

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ब्रह्मचर्य के १०० लाभ - भाग 17

 

"ब्रह्मचर्य के १०० लाभ" के भाग 17   में आप का स्वागत है।  भाग १भाग २, भाग ३, भाग ४भाग ५ , भाग 6 और भाग 7  va  भाग 8  भाग ९ व भाग १० व  भाग ११  भाग १२     भाग 13  ,   भाग 14   व भाग 15  व भाग 16   पढ़ें।

ब्रह्मचर्य का ८१वा लाभ : ब्रह्मज्ञान प्राप्त होना 

जब मनुष्य ब्रह्म को ही अपनी दिनचर्या बना लेता है , ब्रह्म को याद करते ही सारा दिन बिता देता है | ब्रह्म से ही उसकी रात बीत जाती है तो वह जान जाता है | 

यह संसार नाशवान है यह सारी प्रकृति नाशवान है इस से कभी भी मोह नहीं रखना इसको समझ कर ब्रह्म जो कभी नाश नहीं होता , उससे मोह रखना , उससे नाता जोड़ना ही ब्रह्मज्ञान है 

जो संसारी व्यक्ति को कभी नहीं हो सकता जो ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता |  बाद में जब धीरे धीरे कर के उसके मोह वाली चीजे ख़तम होती जाती है तो वापस वो परमात्मा की तरफ लोटता है 

क्योकि संसार नाशवान है व आप का इसके के साथ विषय मोह है पर इसका अंत है घोर दुःख 

क्योकि परमात्मा अमर है व आप का इसके साथ आत्मिक मोह है पर इसका का अंत है अंतहीन आनंद 

माया तो ठगनी , ठगत फिरत संसार 

जिस ठग यह ठगनी ठगी , उस ठग को नमस्कार 

इस ब्रह्मज्ञान से हमेशा की ख़ुशी प्राप्त होती है जो कभी दुःख में नहीं बदलती क्योकि आप ज्ञान के उजाले में आ जाते हो व अँधेरा जो अज्ञान का था वो ख़तम हो जाता है 

खुदा देता है जिनको ऐश उनको ग़म भी होते है

 जहां बजते है नक्कारे वह मातम भी होते है 

आज पूरा संसार विषय सुख को असली समझ बैठा है यह ब्रह्मज्ञान नहीं यह तो अज्ञान है 

मैं प्राकृतिक डॉक्टर हूँ  हजारों पेशेंट्स से मिला व जिन्होंने भी विषय से सुख की कामना की वो आज रोगी होकर दुखी है 

क्योकि 

जहां भोग , वहाँ रोग 

जहां परमात्मा से योग, वहां निरोग 


खुदा को भूल गए लोग फ़िक्रे रोजी में 

ख़याले रिजक है राजक का कुछ ख्याल नहीं 

ब्रह्मचर्य का ८२ वा लाभ : मन वश में होना  

कहा गया है जिस ने अपने मन को वश में कर लिया है उसके लिए कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता पर मन वश में कैसे होगा मन वश में होता है जब यह तप जाता है 

तो मन कैसे तपता है 

मन तपता है ब्रह्मचर्य के व्रत के पालन से 

इसी लिए कहा है 

ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है 

जब आँख गलत दिशा में जाने लगे तो उसको रोकना तप है उसको ब्रह्म की तरफ देखना तप है | 

जब कान गलत दिशा में जाने लगे तो उसको रोकना तप है उसको ब्रह्म की बाते सुनना तप है | 

इस तप को करने से मन आग में लोहे के समान तपेगा 

तब जो मन बनेगा , उसे आप वश में कर सकते हो क्योकि वो आप का कहना मानेगा , नहीं तो आप उसके वश में हो जाओगे | 

ब्रह्मचर्य का ८३  वा लाभ : जीवन का उदेश्य पूरा होना 

क्या खाना पीना, सोना व भोग करना ही जीवन है क्या इसी लिए जीवन मिला है कि इसे विषय में ख़तम कर दिया जाये | नहीं यह जीवन का उदेश्य नहीं क्योकि जो भोगी बन जाते है वो होते है रोगी व यह रोग जब मानसकि हो जाये तो यही करते है आतम हतिया अब आप ही बताये क्या आत्म हतिया उदेश्य है जीवन का 

एक व्यक्ति ने कर्ज  तो लिया व्यापर के लिए पर अपनी पत्नी के साथ मजे लेने व भोग करने के लिए घूमने चला गया व जब बैंक वाले आये तो कहने लगा के व्यापर में लगाया था पर व्यापार में घाटा हो गया, इस लिए मैं कर्जा व उसका ब्याज वापिस नहीं कर सकता, बैंक वालो को डर लगा के हमारा धन डूब जायेगा, 

इस लिए मिया बीवी को मकान से बाहर करके मकान पर बैंक ने कब्जा कर लिया | यह हो गयी भाई इसकी बदनामी, 

अब जाये तो कहा जाये, जितना भीख का आनंद लिया था हराम  से सब दुःख में बदल गया 

इतने निराश हुए के दोनों ने नदी में कूद कर आतम हतिया कर ली 

इस संसार में ऐसे लाखों मनुष्य रोज आतम हतिया करते है क्योकि उनको अपनी इन्द्रियों पर नयंत्रण नहीं होता 

यदि यह पत्नी व पति ब्रह्मचारी होते तो इन्हे पता होता 

धरम सबसे पहले है , किसी से कर्ज लिया है उसे ब्याज समेत लौटना है उसे अपने मतलब के लिए इस्तमाल करने के बारे में सोचना भी पाप है 

तो दोनों पुरषार्थ करते इस धन को व्यापर में लगाते 

जिस से लाभ व मूलधन दोनों बढ़ते व यह उनके अर्थ का उदेश्य पूरा करते व अब वह कर्जा लोटा देते 

फिर जो लाभ हुआ उसमें कुछ बचा  करा धरम के अनुसार अपनी कामनाओं को पूरा करते व 

कुछ समय उस परमात्मा को भी याद करते जिसने 

धन उधार दिलवाया 

उनमें पुरषार्थ को पैदा किया 

उनके घर धन आने का मार्ग दिखाया 

व उनकी सभी मनो कामनों को पूरा किया 

जब करोगे परमात्मा कोयाद तो यही है ब्रह्मचर्य व इसी से होते है परमात्मा के दर्शन  

परमात्मा को मिलना ही हमारा उदेश्य है इस जीवन का 

जो ज्योतियों का ज्योति है 

जो धन में धन कुबेर है 

जो सूर्य चाँद , अनंत तारों को बनाने वाले व उसमें इतना प्रकाश के यह सूर्य , चाँद व तारों का प्रकाश भी कम पड़ जाये 

ब्रह्मचर्य का ८४वा लाभ : ब्रह्मचर्य मुश्किल है पर मुश्कले ही नए अवसर को जन्म देती है 

मुझे  हर कोई कहता है कि ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत मुश्किल है मैं कहता हु यही इसका लाभ है हर मुश्किल आपके जीवन में एक अवसर को जनम देता है ताकि आप सफल हो जाओ हमेशा के लिए | 

जैसे 

१. सुनार का कार्य मुश्किल है काफी समय बिना पंखे, आग के पास बैठना पड़ता है पर तभी उसके सोने के चमकते हुए गहने सब को दिखयी देते है मुश्किल है सुनार बनना पर सुनार के कार्य से जो गहने बनते है उसका मुल्य सोने से ज्यादा होता है व उसे अपनी मेहनत का फल मिलता है 

२. किसान का कार्य मुश्किल है मिटी से मिटी होना पड़ता है तभी उसकी फसल लहराती है 

३. माली का कार्य मुश्किल है पर उसकी मेहनत से पूरा बाग फलों से भर जाता है 

४. इन्द्रियों को बार बार विषय से बचा  कर रखना मुश्किल तो है पर इससे ही आप वीर्य प्राप्त करके शारीरक बल , मानसिक शक्ति व आत्मिक बल प्राप्त कर सकते हो | 

ब्रह्मचर्य का ८५वा लाभ : अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाना 

  महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कहा था जिस देश में हर नागरिक ब्रह्मचारी हो उस देश की उनती को कोई रोक नहीं सकता व जिस देश में हर कोई वेभिचारी हो उस देश की अवगति को कोई रोक नहीं सकता | ब्रह्मचर्य से ही आप अपने देश का गौरव बड़ा सकते हो | क्योकि पहले आप खुद ब्रह्मचारी बनते हो व इस ब्रह्मचर्य से जो आप में बल , शक्ति व बुद्धि आती है उससे आप देश की सेवा करने में योगदान देते हो व देश चरित्र व धन के रूप में विश्व में सबसे आगे निकल जाता है 

१. जो विषय के गुलाम है जो इन्द्रियों के गुलाम है , उन्हें लालच देना बहुत आसान है क्योकि वो दास है अपनी  दस  इन्द्रियों के | यही लालच बेईमानी, भरष्टाचार व रिश्वतखोरी को जनम देता है | कचन व कामिनी के चकर में देश को बेच दिया जाता है | 

आओ भारतीयों उठो, जागो व  इंद्रियों की गुलामी त्यागों व बनो पके ब्रह्मचारी | व दूसरों को भी बनाओ ब्रह्मचारी | क्योकि दूसरों की उनती में अपनी उनती का रहस्य छुपा हुआ है | 

Name

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स्वामी दयानंद प्राकृतिक चिकित्सालय: ब्रह्मचर्य के १०० लाभ - भाग 17
ब्रह्मचर्य के १०० लाभ - भाग 17
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स्वामी दयानंद प्राकृतिक चिकित्सालय
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